एक ऐसा गांव जहा हर घर में चेस चैंपियन है।

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एक ऐसा गांव जहा हर घर में चेस चैंपियन है - छठी शताब्दी में शतरंज को संस्कृत में ‘चतुरंग’ कहा करते थे। जिसका मतलब होता है चार डिवीज़न. माना जाता है कि शतरंज सबसे पहले भारत में ही शुरू हुआ था।

केरल का एक गांव है ‘मारूतीचल’. यहां 6 हज़ार लोग हैं और इनमें से 4 हज़ार लोग लगभग रोज़ शतरंज खेलते हैं।

लेकिन इस गांव की हालत आज से 40 साल पहले कुछ और ही थी।  तब शतरंज खेलने की बजाए  ज्यादातर लोगों का समय शराब पीने और जुआ खेलने में बीतता था।

बच्चे भी अपने से बड़ों से यही सब सीख रहे थे।  इस गांव की हालत सुधारने का ज़िम्मा इस गांव के उन्नीकृष्णन ने लिया।

उन्नीकृष्णन शतरंज के जाने माने खिलाड़ी बॉबी फिशर के दीवाने थे. बॉबी ने 16 साल की उम्र में शतरंज ग्रैंडमास्टर बनकर रिकॉर्ड कायम किया था।  40 साल पहले उन्नीकृष्णन ने ये फैसला लिया।

एक ऐसा गांव जहा हर घर में चेस चैंपियन है

 कि वो अपने गांव को शराब-मुक्त बनाने के लिए शतरंज का सहारा लेंगे। उन्नीकृष्णन को फिशर के बारे में एक मैगज़ीन से पता चला। 

उसने गांव वालों की शतरंज की क्लासज़ लेनी शरू की। उसे एहसास हुआ कि इस खेल का इस्तेमाल गांव की स्थिति सुधारने के लिए किया जा सकता है।

अपने गांव के पास के शहर कल्लुर से चेस की ट्रेनिंग लेकर आए उन्नीकृष्णन ने अपने गांव आकर चाय की दुकान खोली। जहां वो फ्री में लोगों को शतरंज खेलना सिखाने लगे।  इसके अलावा वो लोगों को अपने घर में भी ट्रेनिंग दिया करते थे।

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 उन्हें ऐसा करते हुए अब 40 साल से ज़्यादा हो गए।  ये एक चमत्कार था।  जैसे-जैसे इस गांव में शतरंज की लोकप्रियता बढ़ती गई, वैसे-वैसे लोगों की जुए और शराब की आदत भी कम होती गई।

आज इस गांव का हर एक परिवार शतरंज खेलना जानता है।


उन्नीकृष्णन बताते हैं शतरंज उनका पैशन है. एक बार वो खेलना शुरू कर दें, फिर वो सब भूल जाते हैं. ये एक तरह की लत है उनके लिए। यहां अब एक मारूतीचल चेस एसोसिएशन भी चलता है।

 जिसके अध्यक्ष हैं बेबी जॉन. इस एसोसिएशन वाले, साल 2016 में 15 चेस बोर्ड के साथ मारूतीचल प्राइमरी स्कूल पहुंचे. बच्चों को शतरंज सीखने के लिए प्रेरित किया।  इसका अब ऐसा असर है कि स्कूल का हर बच्चा क्लासरूम में चेस बोर्ड लेकर आता है।

एक ऐसा गांव जहा हर घर में चेस चैंपियन है

 बच्चों से मिले ऐसे रेस्पॉन्स से बेबी जॉन के मन में एक उम्मीद बनी है। उम्मीद एक सपने के पूरे होने की, जिसमें गांव के सारे लोग शतरंज खेलना जानते हैं।

शतरंज से फोकस बढ़ता है, पर्सनेलिटी निखरती है और लोग आपस में जुड़ाव महसूस करते हैं।  यहां के लोग अब टीवी देखने से भी ज़्यादा शतरंज खेलना और आपस में बात करना पसंद करते हैं।

किन क्या आज के मॉडर्न होते ज़माने में ये गांव इस शतरंज के खेल के कल्चर को जारी रख पाएगा? वो गांव जहां लोग इतने पुराने खेल के ज़रिए सही राह पकड़ रहे हैं। तो इसका जवाब है हां।

  यहां लोग स्मार्टफ़ोन में भी शतरंज खेलते हैं. इस गांव की इतनी पॉपुलैरिटी है कि यहां जर्मनी और अमेरिका से भी लोग शतरंज की बारीकियां सीख रहे हैं।

इस गांव पर एक फिल्म भी बनी है। इसका नाम है अगस्त क्लब, जिसे के.बी. वेणु ने डायरेक्ट किया है और इसकी स्क्रिप्ट दिग्गज फिल्ममेकर पद्मराजन के बेटे अनन्तपद्मनभ ने लिखी है. ये 2013 में रिलीज़ हुई थी। ये एक मलयालम रोमैंटिक मूवी है।

शतरंज के महारथी अपने दिमाग में दस हज़ार से तीस हज़ार तक पोजिशन पैटर्न स्टोर करके रखते हैं। ये बहुत ही अद्भुत और चौंकाने वाला है।  यही इस खेल को असाधारण बनाता है।

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