गाज़ा में इज़रायल-हमास युद्ध के चलते अब तक 38,000 से अधिक लोगों की मौत हो चुकी है। हालात इतने भयानक हैं कि संयुक्त राष्ट्र ने गाज़ा को “धरती का नर्क” कहा।
गाज़ा पट्टी – एक छोटा-सा इलाका, जिसकी सीमा इज़रायल, मिस्र और भूमध्य सागर से लगती है, पिछले कई दशकों से संघर्ष और हिंसा का गवाह रहा है। लेकिन जो संकट 7 अक्टूबर 2023 को शुरू हुआ, वह अब तक की सबसे भीषण त्रासदी बन चुका है।
इस दिन फिलिस्तीनी संगठन हमास (Hamas) ने इज़रायल पर बड़ा और अप्रत्याशित हमला किया। इस हमले में करीब 1,200 इज़रायली नागरिक मारे गए, और कई लोगों को बंधक बना लिया गया। यह घटना इज़रायल के लिए सबसे घातक मानी गई।
हमास के हमले के जवाब में, इज़रायल ने गाज़ा पर विस्तृत और घातक सैन्य अभियान शुरू कर दिया। यह अभियान सिर्फ आतंकियों तक सीमित नहीं रहा, बल्कि रिहायशी इलाकों, अस्पतालों, स्कूलों और शिविरों तक फैल गया।
- हवाई हमले, टैंक हमले, और जमीनी ऑपरेशन – गाज़ा में हर जगह मौत मंडरा रही थी।
- लगातार बमबारी से लाखों लोग बेघर हो गए।
- बिजली, पानी, दवा, खाना – सब खत्म होने लगा।
अब तक की सबसे भयावह स्थिति – जुलाई 2025 तक का हाल
आज जब हम जुलाई 2025 में खड़े हैं, गाज़ा में हालात बद से बदतर हो चुके हैं।
ताजा अपडेट (22-23 जुलाई 2025):
- 24 घंटों में 72 फिलिस्तीनी नागरिक मारे गए, जिनमें 21 बच्चे शामिल थे।
- कुल मौतों का आंकड़ा 38,000 पार कर गया है।
- लाखों लोग अभी भी बिना भोजन, पानी और दवा के जी रहे हैं।
UNRWA प्रमुख का बयान: “गाज़ा धरती का नर्क बन चुका है”
संयुक्त राष्ट्र की राहत संस्था UNRWA के प्रमुख फिलिप लाज़रिनी ने गाज़ा की स्थिति को "धरती का नर्क" (Hell on Earth) कहा है। उन्होंने कहा:
"यहां लोग हर दिन मरने का इंतज़ार कर रहे हैं। यहां हर कोना तबाही, भूख और डर से भरा है।"
उनका यह बयान दर्शाता है कि गाज़ा में जीवन पूरी तरह से ठप हो गया है – कोई स्कूल नहीं, कोई इलाज नहीं, और कोई सुरक्षित आश्रय नहीं।
बच्चों और महिलाओं की सबसे ज्यादा त्रासदी
इस युद्ध में सबसे ज्यादा नुकसान बच्चों, महिलाओं और बुजुर्गों को हुआ है।
- हजारों बच्चे मारे गए हैं।
- माताएं अपने बच्चों को गोद में लेकर बमबारी से भागती फिर रही हैं।
- पूरे परिवार मलबे में तब्दील हो चुके घरों में दफन हो गए।
यह सिर्फ एक युद्ध नहीं, इंसानियत की हत्या है।
इस गंभीर मानवाधिकार संकट को देखते हुए दुनिया भर के कई देश हस्तक्षेप की मांग कर रहे हैं।
- यह समूह यूरोपीय संघ (European Union - EU) की अगुवाई में बना है।
- इनमें EU के सभी 27 सदस्य देश शामिल हैं (जैसे फ्रांस, जर्मनी, इटली, स्पेन आदि)।
- इनके साथ संभवत: एक अतिरिक्त सहयोगी देश जैसे नॉर्वे, स्विट्ज़रलैंड या जापान भी इस संयुक्त बयान का हिस्सा है।
- संयुक्त राष्ट्र, यूरोपीय संघ, मानवाधिकार संगठन, सभी युद्ध बंद करने की अपील कर रहे हैं।
- लेकिन न तो इज़रायल पीछे हट रहा है, और न ही हमास।
- कुछ देश इज़रायल का समर्थन कर रहे हैं, तो कुछ फिलिस्तीन के पक्ष में आवाज़ उठा रहे हैं।
उन्होंने क्या मांग की? -
- गाजा में युद्ध तुरंत बंद हो (Immediate Ceasefire)
- बिना शर्त मानवीय सहायता पहुंचाने की अनुमति दी जाए
- अस्पतालों, स्कूलों और नागरिक ठिकानों पर हमले बंद हों
- संयुक्त राष्ट्र और अंतरराष्ट्रीय संगठनों को गाजा में कार्य करने दिया जाए
- कूटनीतिक समाधान के लिए सभी पक्ष बातचीत करें
इन मांगों का उद्देश्य सिर्फ युद्ध रोकना नहीं है, बल्कि गाजा में आम लोगों की जान बचाना और स्थायी शांति की प्रक्रिया शुरू करना है। क्योंकि गाज़ा के आम लोग सिर्फ ज़िंदा रहना चाहते हैं।
इस्राइल का जवाब -
इज़राइल ने इस संयुक्त मांग को साफ़ तौर पर खारिज कर दिया है।
उनका कहना है:
"हमास एक आतंकवादी संगठन है जिसने हमारे नागरिकों पर हमला किया। हम आत्मरक्षा कर रहे हैं। जब तक हमास का पूरी तरह खात्मा नहीं होता, हम रुकेंगे नहीं।"
इज़राइल इसे राष्ट्रीय सुरक्षा का मुद्दा मानता है, न कि केवल युद्ध का।
मानवाधिकार संकट क्यों?
- नागरिक ठिकानों पर हमला – अंतरराष्ट्रीय नियमों का उल्लंघन
- मानवीय सहायता की अनुमति नहीं – दवा, पानी, भोजन की भारी किल्लत
- हर दिन बच्चे मारे जा रहे हैं
- शरणार्थी शिविरों और अस्पतालों पर भी बम गिराए जा रहे हैं
जब तक युद्ध बंद नहीं होता, तब तक राहत की कोई उम्मीद नहीं।
- युद्धविराम की जरूरत है
- गाज़ा में मानवीय सहायता पहुंचानी होगी
- और सबसे जरूरी – इंसानियत की पुकार सुननी होगी
क्या हम अब भी इंसान हैं?
गाज़ा की यह कहानी सिर्फ युद्ध की नहीं, मानवता की सबसे बड़ी हार की कहानी है।
जब मासूम बच्चों की लाशें मलबे से निकाली जाती हैं,
जब एक मां अपने बच्चे के शव को गले लगाकर चुपचाप रोती है,
तो सवाल उठता है – क्या अब भी हम इंसान कहलाने लायक हैं?
अगर यह लेख आपको सोचने पर मजबूर करता है, तो इसे जरूर शेयर करें – ताकि दुनिया इस दर्द को समझ सके। गाज़ा को हमारी संवेदना, आवाज़ और इंसानियत की ज़रूरत है।