सदियों पुरानी सभ्यताओं की भूमि थाईलैंड और कंबोडिया एक बार फिर सीमा विवाद की आग में झुलस रही है।
जहां एक ओर बौद्ध मंदिरों के मलबे से धूल उड़ रही है, वहीं दूसरी ओर लोगों की चीखें और विस्थापन की त्रासदी ने दोनों देशों को मानवीय संकट के मुहाने पर ला खड़ा किया है।
संघर्ष की शुरुआत: मंदिर बना रणभूमि
यह विवाद कोई नया नहीं है। थाईलैंड और कंबोडिया के बीच वर्षों से प्राचीन बौद्ध मंदिर प्रेह विहार (Preah Vihear) और प्रसात ता मुएन थॉम (Prasat Ta Muen Thom) को लेकर सीमा रेखा पर तनाव रहा है।
1962 और 2013 में अंतरराष्ट्रीय न्यायालय (ICJ) के फैसलों के बावजूद जमीन का वास्तविक नियंत्रण अब भी विवादास्पद बना रहा।
28 मई 2025: संघर्ष की चिंगारी
- संघर्ष की शुरुआत 28 मई 2025 को हुई जब सीमा पर स्थित Emerald Triangle में थाई और कंबोडियाई सैनिकों के बीच फायरिंग हुई।
- इसमें एक कंबोडियाई सैनिक की मौत हो गई।
- इस घटना ने पुराने घावों को फिर से हरा कर दिया और तनाव और गहरा हो गया।
मई-जून 2025: बढ़ता तनाव और कूटनीतिक असफलता
- कंबोडिया ने ICJ का रुख किया, वहीं थाईलैंड ने अपने सैनिकों की तैनाती बढ़ा दी।
- दोनों देशों ने राजनयिक प्रतिनिधियों को वापस बुला लिया।
- कंबोडियाई मीडिया पर थाई कंटेंट प्रतिबंधित किया गया और थाई उत्पादों के बहिष्कार की अपील की गई।
- शांति वार्ता विफल रही और विवाद अब कूटनीतिक से सैन्य रूप लेने लगा।
24–25 जुलाई 2025: जब युद्ध ने मंदिर तोड़े
- 24 जुलाई की रात थाई सेना ने एफ-16 लड़ाकू विमानों से हवाई हमले किए और BM-21 रॉकेटों से हमला किया।
- प्रसात ता मुएन थॉम जैसे ऐतिहासिक मंदिरों को भारी नुकसान पहुंचा।
- कम से कम 46 लोग मारे गए जिनमें थाई नागरिक, सैनिक और कंबोडियाई पक्ष के लोग शामिल हैं।
- 1 लाख से ज्यादा लोग (करीब 1.38 लाख थाई नागरिक और 20-58 हजार कंबोडियाई नागरिक) अपने घर छोड़ने को मजबूर हो गए हैं।
बौद्ध विरासत खंडहर में तब्दील
- यह संघर्ष सिर्फ जान-माल की हानि नहीं, बल्कि संस्कृति और इतिहास के खिलाफ अपराध भी है।
- यूनेस्को द्वारा संरक्षित प्राचीन बौद्ध मंदिरों पर बमों की बारिश हुई।
- विश्व धरोहर स्थलों का मलबा बन जाना केवल एशिया ही नहीं, पूरे विश्व के लिए चिंता का विषय है।